Dec. 14, 2021

मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न-1

प्रश्नः1 प्राचीन भारत के इतिहास में गुप्तकाल के लिए 'स्वर्ण युग' शब्द के औचित्य का परीक्षण कीजिए।

उत्तर- गुप्तकाल के मूल्यांकन में प्रायः दो अतिवादी एवं विरोधी विचार देखने को मिलते हैं। एक विचार के अनुसार, गुप्तकाल की उपलब्धियां इतनी विलक्षण रहीं कि इसे स्वर्ण काल कहना सर्वथा उचित है, वहीं एक दूसरे विचार के अनुसार, यह वह काल था जब आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक संरचना में अवनति देखी गई परन्तु वास्तविकता इन दोनों अतिवादी विचारों के मध्य में उपस्थित है।

स्वर्ण युग शब्द का प्रयोग विश्व इतिहास एवं भारतीय इतिहास के कुछ कालों के लिए हुआ उदाहरण के लिए, यूनान में पेरिक्लिज काल,  ब्रिटेन में एलिजाबेथ का काल तथा प्राचीन भारत में गुप्त काल आदि परन्तु हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि स्वर्ण युग शब्द का प्रयोग तब किया जा रहा था जब इतिहासकार एवं विद्वानों की दृष्टि राजवंशों के अध्ययन पर थी तथा राज परिवार की समृद्धि को सम्पूर्ण काल की समृद्धि का पर्यायवाची मान लिया जाता।

वहीं दूसरी तरफ गुप्तकाल को पूरी तरह से अवनति का काल करार देना भी उचित नहीं लगता। एक विचार के अनुसार इस काल को नगरीकरण, मुद्रा अर्थव्यवस्था एवं व्यापार के पतन का काल घोषित किया गया और कहा गया इस काल में उत्तर भारत में सामंती संबंधों का विकास हुआ तथा अर्थव्यवस्था का ग्रामीणीकरण हो गया। परन्तु परीक्षण करने पर हमें इनसे पृथक कुछ अन्य बाते भी ज्ञात होती हैं, वह यह कि यह काल सांस्कृतिक उत्पादों की दृष्टि से अभूतपूर्व काल था। इस काल में देवगढ़ एवं भितरगांव के मन्दिर, अजन्ता एवं उदयगिरी के गुफा मन्दिर तथा धामेख स्तूप ये सभी भारतीय स्थापत्य की महान धरोहर हैं। उसी प्रकार मथुरा और सारनाथ की मूर्ति कला शैली, सुल्तानगंज स्थित बुद्ध की कांस्य मूर्ति इन सभी ने भारतीय मूर्तिकला पर स्थायी प्रभाव छ़ोडा। इसके अतिरिक्त अजंता और बाघ की चित्रकला ने न केवल परवर्तीकालीन भारतीय चित्रकला बल्कि सम्पूर्ण बौद्ध विश्व को प्रभावित किया। इस काल में मूर्तिकला एवं चित्रकला ने क्लासिकल मानदंड ग्रहण किये।

फिर गुप्तकाल की संस्कृतिक उपलब्धियां यही तक सीमित नहीं है। इस काल में संस्कृत साहित्य लेखन में नये मानदण्ड स्थापित हुए। कालिदास एवं विशाखदत्त की रचनाएं संस्कृत साहित्य की अनुपम धरोहर है। इस काल में कला और साहित्य के अतिरिक्त विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण विकास देखा जा सकता है। आर्यभट्ट, वराहमिहिर एवं ब्रह्मगुप्त जैसे महान विद्वानों ने गणित एवं खगोल शास्त्र के क्षेत्र में अनुपम योगदान दिये। औषधि शास्त्र के विकास में धनवन्तरी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। सबसे बढ़कर साहित्य, कला एवं विज्ञान के क्षेत्र में ये अभूतपूर्व उपलब्धियां यह दर्शाती है कि गुप्तकाल में नगरीकरण उत्कर्ष की अवस्था में था। यह  गौर करने वाली बात है कि इतने उत्कर्ष साहित्य एवं कला का संरक्षण कोई ग्रामीण समाज नहीं बल्कि एक नगरीय समाज ही दे सकता था।

उपर्युक्त तथ्यों का विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि गुप्तकाल को स्वर्ण काल अथवा सामंतीकाल जैसे दो विरोधी कालो में बांटकर देखने के बजाय इसे महान सांस्कृतिक उपलब्धियों के काल के रूप में देखने की जरूरत है।