मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न -18
प्रश्नः बौद्ध धर्म के सामाजिक पक्ष को उद्घाटित कीजिए तथा उसके पतन के कारण बताईए।
उत्तरः बौद्ध पंथ एक धार्मिक आंदोलन ही नहीं अपितु एक सामाजिक आंदोलन भी था। इसने सामाजिक प्रतिरोध की एक पद्धति कायम की। यही वजह है कि महात्मा बुद्ध की विश्व के कुछ गिने चुने सुधारकों में गणना की जाती है।
बुद्ध ने यह घोषित किया कि वर्ण व्यवस्था ईश्वर निर्मित नहीं अपितु मानव निर्मित है। इसने ब्राह्मणवादी श्रेष्ठता तथा वर्ण व्यवस्था को अस्वीकार कर दिया। फिर बौद्ध पंथ ने शूद्रों के लिए भी निर्वाण का दरवाजा खोल दिया। इसने गृहस्थ जीवन से परित्यक्त महिलाओं के लिए संघ जीवन के रूप में एक विकल्प दिया। धर्म के क्षेत्र में भी इसने वैदिक कर्मकाण्ड को अस्वीकार कर दिया। इसके इसी रेडिकल स्वरूप के कारण भारत से बाहर भी इसे स्वीकृति मिली। यह जहाँ भी गया वहाँ की क्षेत्रीय जरूरत के अनुकूल यह ढल गया। भारत में भी इसकी लोकप्रियता का एक महत्वपूर्ण कारण रहा था संस्कृत को छोड़कर जनसामान्य की भाषा पाली को अपना लेना।
पतन के कारणः किंतु कालांतर में चलकर बौद्ध पंथ के स्वरूप में परिवर्तन आने लगा तथा इसमें ‘मूल परिवर्तनवाद’ का स्वर धीमा पड़ गया एवं इसका रूख अधिक से अधिक समझौतावादी हो गया। ईसा की आरंभिक शताब्दियों तक बौद्ध भिक्षु स्थायी जीवन जीने लगे तथा व्यापारियों एवं धनाढ्य व्यक्तियों से प्रचुर मात्रा में अनुदान ग्रहण करने लगे। इनका जीवन एश्वर्यपूर्ण होता गया।
फिर बौद्ध पंथ ने स्तूप पूजा एवं मूर्तिपूजा को भी अपना लिया। इसने लोक भाषा पालि को छोड़कर आभिजात्य भाषा संस्कृत को अपना लिया। इस प्रकार यह ब्राह्मण पंथ के निकट आ गया। ब्राह्मणों ने इसका फायदा उठाया और बौद्ध पंथ को ब्राह्मण धर्म ने अपने में समाहित कर लिया। इस प्रकार सामाजिक दृष्टिकोण बौद्ध पंथ की एक प्रबल शक्ति रही थी और फिर उस दृष्टिकोण में परिवर्तन बौद्ध पंथ के पतन का एक महत्वपूर्ण कारण बन गया। इसके अतिरिक्त बौद्ध पंथ के पतन के लिए कुछ अन्य कारण भी उत्तरदायी थे।
बौद्ध पंथ के प्रसार को रोकने के लिए ब्राह्मण पंथ में भी सुधार की प्रक्रिया आरंभ हो गई। शंकराचार्य ने अद्वैत चिंतन को पुनः स्थापित कर ब्राह्मण पंथ का उद्धार किया। फिर पुनः स्थापित ब्राह्मण पंथ ने बौद्ध पंथ को रोकने का प्रत्यन किया। उसी प्रकार, कुछ उत्पीड़क शासकों (शशांक, पुश्यमित्र शुंग) के द्वारा भी बौद्ध मत को दबाने का प्रयत्न किया गया। बताया जाता है कि बंगाल के शासक शशांक ने बोधि वृक्ष को ही नष्ट कर दिया। इसके अतिरिक्त, चूंकि बौद्ध संघों में अतिरिक्ति धन का संग्रह हो गया था अतः यह संघ विदेशी आक्रमण के भी निशाने बन गए थे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि बौद्ध पंथ के पतन के लिए अनेकों कारक उत्तरदायी रहे थे किंतु पतन का प्रधान कारक था इसके स्वरूप में होने वाले परिवर्तन। जैसाकि हमने देखा कि बौद्ध की सामाजिक क्रांतिकारिता ने इसे लोकप्रिय बनाया था किंतु इसके समझौतावादी नजरिए ने इसकी विशेषता को समाप्त कर दिया।