Jan. 11, 2022

मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न -२५

प्रश्नः धर्मशास्त्र तथा अर्थशास्त्र परंपरा में स्त्रियों के लिए सामाजिक नियम वर्णाश्रम प्रथा के आधार पर बने थे आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।

उत्तरः प्राचीन काल के सामाजिक व्यवस्था का आधार वर्णाश्रम व्यवस्था था। अतः इस काल के प्रमुख चिंतकों के द्वारा वर्णाश्रम व्यवस्था के सफल संचालन के लिए ब्राह्मणवादी विशेषाधिकार एवं महिलाओं को पुरूषों के अधीन करने पर बल दिया गया।  धर्मशास्त्र इसका ज्वलंत उदाहरण है। यद्यपि कौटिल्य का अर्थशास्त्र ने भी ब्राह्मणों के विशेषाधिकार एवं पुरूषों की श्रेष्ठता पर बल दिया है किंतु चूँकि उसकी दृष्टि एक विशिष्ट प्रकार की राजनीतिक अर्थव्यवस्था से प्रेरित है इसलिए महिलाओं के प्रति उसकी दृष्टि धर्मशास्त्र की तुलना में नरम रही है।  

धर्मशास्त्र के लेखक ने महिलाओं के अधिकारों पर चोट की तथा उन्हें पुरूषों के अधीन कर दिया। गौतम, बौधायन, वशिष्ठ,  जैसे लेखकों ने वैदिककालीन चिंतकों की तुलना में कठोर दृष्टिकोण अपनाया है। धर्मसूत्र में विधवा पुनर्विवाह को भी हतोत्साहित करने का प्रयास किया गया है। उन्हें संपत्ति के अधिकार से भी वंचित रखा गया है। बौधायन लिखता है कि पुत्री को तभी सम्पत्ति मिले जब कोई सपिंड न हो (अपने परिवार के साथ-साथ अपने पड़ोसियों में कोई उत्तराधिकारी न हो)। उसी प्रकार इस काल में दहेज प्रथा का भी प्रचलन आरंभ हो गया था।                                              वहीं दूसरी तरफ कौटिल्य विधवाओं को पुनर्विवाह का अधिकार देता है। कुछ विशिष्ट स्थिति में महिलाओं को तलाक का भी अधिकार देता है। गणिकाओं (वेश्याओं) के प्रति भी उसकी दृष्टि नरम है। वह उन्हें रूपाजीवा कहता है जिससे राज्य को आमदनी प्राप्त होती थी।

वस्तुतः कौटिल्य की प्राथमिकता धर्मशास्त्र के लेखकों से अलग है। वह राज्य को एक ठोस आर्थिक आधार तथा सरकार को विशिष्ट शक्ति प्रदान करना चाहता है। इसलिए धर्मशास्त्र के लेखक के विपरीत सामाजिक मुद्दों पर उसकी दृष्टि थोड़ी लचीली है। इस प्रकार अर्थशास्त्र तथा धर्मशास्त्र के दृष्टिकोण का मूल्यांकन करते हुए इस तथ्य को ध्यान में रखना आवश्यक है।