मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न -27
प्रश्नः छठी शताब्दी ईúपूú में धार्मिक परिवर्तन को धार्मिक आंदोलन कहना कहाँ तक उचित है?
उत्तरः आंदोलन का अर्थ होता है व्यापक एवं द्रुत परिवर्तन। जहाँ तक छठी सदी ईúपूú में धार्मिक परिवर्तनों का सवाल है तो यह परिवर्तन द्रुत नहीं था वरन् यह सैकड़ों वर्षों के क्रमिक परिवर्तन का परिणाम था। पहली बार अरण्यक में ही विरोध का स्वर उभरने लगा था। फिर इसका विकास उपनिषद् के चिंतन के रूप में देखा गया। उपनिषद ने वैदिक कर्मकाण्ड को अस्वीकार कर दिया। अगर एक दृष्टि से देखा जाए तो बौद्ध और जैन चिंतक भी उपनिषद के द्वारा स्थापित विरोध की परंपरा से जुड़े हुऐ थे। इस प्रकार धार्मिक परिवर्तन क्रमिक रहा, अर्थात् परिवर्तन की प्रक्रिया अरण्यक से आरंभ होकर बौद्ध एवं जैन चिंतन तक पहुंच गई।
फिर भी आंदोलन शब्द के औचित्य को अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। इसका कारण है इस काल में धार्मिक पंथों की बहुलता तथा इन पंथों के दृष्टिकोणों में भिन्नता। कुछ पंथ ईश्वरवादी हैं तो कुछ अनिश्वरवादी, कुछ आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं तो कुछ अस्वीकार, कुछ धार्मिक पंथ कर्म एवं पुनर्जन्म की अवधारणा को मानते हैं तो कुछ अन्य उन्हें अस्वीकार करते हैं, कुछ पंथों का दृष्टिकोण मध्यममार्गी है तो कुछ का अतिवादी। इन सबों ने मिलकर धर्म के क्षेत्र में ऐसी वैचारिक उथल-पुथल मचा दी जिसे आंदोलन कहना ज्यादा सटीक होगा।