मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न -36
प्रश्न - आचार्य विनोबा भावे के भूदान व ग्रामदान आंदोलनों के उद्देश्य का समालोचनात्मक विवेचना कीजिए और उनकी सफलता का आकलन कीजिए।
उत्तरः भूदान एवं ग्रामदान आंदोलन वर्ग-समन्वय पर आधारित भूमि सुधार का एक कार्यक्रम था। इसके अपने सबल एवं निर्बल पक्ष थे। विनोवा भावे ने अहिंसक सामाजिक रूपान्तरण के लिए सर्वोदय समाज का गठन किया। बड़े-बड़े भूस्वामी इस बात के लिए राजी किए गए कि वे कम से कम अपनी भूमि का छठा हिस्सा अनुदान के रूप में दे दें। यह आंदोलन 1951 में तेलांगना के पोचमपल्ली गांव से आरंभ हुआ। 1955 में इसने एक नये आंदोलन का रूप ले लिया। इसे ग्रामदान के नाम से जाना गया। भूदान एवं ग्रामदान के पीछे आदर्श यह था कि सभी भूमि ईश्वर की है तथा इसे खुले रूप में अनुदान दिया जाना चाहिए।
अगर हम भूदान एवं ग्रामदान के उद्देश्य पर विचार करते हैं तो हमें इसके पीछे घोषित एवं अघोषित दो प्रकार के उद्देश्य दृष्टिगत होते हैं। इसका घोषित उद्देश्य था शांति पूर्ण तरीके से आर्थिक पुनर्वितरण। अगर यह मॉडल सफल हो जाता तो यह आर्थिक पुनर्वितरण का एक नवीन मॉडल स्थापित कर सकता था। वहीं इसका अघोषित उद्देश्य था आर्थिक रूप में विभाजित समाज में वर्ग संघर्ष को रोकना। यह भी गौर करने की बात है कि यह आंदोलन तेलांगना से आरंभ हुआ जहां साम्यवादी दल उग्र आंदोलन छेड़ चुका था। इसके अतिरिक्त इस संबंध में एक मान्यता यह भी है कि इस आंदोलन ने भूदान के माध्यम से ग्रामीण भूमिहीनों के बीच थोड़ी-सी भूमि वितरित कर ग्रामीण क्षेत्र से उनके पलायन को रोकने का प्रयास कर रहा था ताकि भूमिधारी वर्ग को पर्याप्त मात्र में कृषि श्रम उपलब्ध रहे।
अब जहाँ तक इसकी सफलता के आकलन का प्रश्न है तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए भूदान आंदोलन कुल मिलाकर सफल नहीं रहा। उड़ीसा में अपेक्षाकृत यह अधिक प्रभावी रहा था किंतु अन्य क्षेत्रें में यह प्रभावहीन रह गया। जो 4 मिलियन एकड़ भूमि अनुदान में दी गई थी वह या तो खेती के लायक नहीं थी या विवादास्पद थी। इस आंदोलन की विफलता ने यह सिद्ध कर दिया कि भूमि-सुधार के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत थी।