मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न -58
प्रश्नः- बलबन के राजत्व की अवधारणा से अलाउद्दीन खिलजी के राजत्व के मॉडल की तुलना कीजिए।
उत्तरः- बलबन तथा अलाउद्दीन खिलजी के राजत्व के मॉडल भिन्न परिस्थितियों की उपज थे। बलबन का उद्देश्य तुर्की अमीर वर्ग की शक्ति को तोड़कर राजतंत्र को एक गंभीर पेशा बनाना था वहीं अलाउद्दीन खिलजी का उद्देश्य अपने साम्राज्य के लिए एक व्यापक सामाजिक आधार तलाशना था। इसलिए दोनों के राजत्व के मॉडल में समानता की तुलना में असमानता ही अधिक महत्वपूर्ण है।
बलबन ने एक शक्तिशाली राजतंत्र की जरूरत के अनुकूल राजत्व का एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया जो सुल्तान एवं अमीरों के बीच स्पष्ट भेद कर सके। इसलिए उसने ईरानी राजतंत्र के मॉडल को अपनाया। उसने अपने को अफराशियाब का वंशज घोषित किया तथा राजत्व को ‘नियाबत-ए-खुदाई’ का नाम दिया। उसने तुर्की अमीरों की शक्ति को दबाया फिर भी वह तुर्की अमीर नस्लवाद की परिधि से बाहर नहीं आ सका। अतः उसने अपने को उनके हितों का रक्षक घोषित करते हुए तुर्की नस्लवाद पर बल दिया। साथ ही उसने सभी महत्वपूर्ण पद तुर्की अमीरों के लिए सुरक्षित कर दिए।
अलाउद्दीन खिलजी ने बलबन के राजत्व के मॉडल को आंशिक रूप में अपनाया तथा राजतंत्र के निरंकुशतावादी मॉडल पर बल दिया। वह इस तथ्य को जानता था कि सुल्तान के पद को शक्तिशली बनाने के लिए अमीरों पर नियंत्रण आवश्यक है इसलिए उसने ‘अमीर-ए-हाजिब’ नामक अधिकारी के माध्यम से अमीरों पर कठोर नियंत्रण स्थापित किया। परंतु वहीं उसने बलबन के द्वारा प्रतिपादित तुर्की नस्लवाद की नीति को अस्वीकार कर दिया तथा अमीर वर्ग का दरवाजा न केवल गैर-तुर्कों के लिए बल्कि भारतीय मुसलमानों एवं हिन्दुओं के लिए भी खोल दिया। वस्तुतः बलबन का राजत्व एक छोटे से राज्य की जरूरत के अनुकूल तो हो सकता था परंतु एक साम्राज्य की जरूरत के अनुकूल नहीं जबकि अलाउद्दीन खिलजी की सोच अखिल भारतीय थी। सबसे बढ़कर उसके राजत्व के इस मॉडल ने मुहम्मद-बिन-तुगलक से लेकर अकबर तक अखिल भारतीय सोच वाले सभी शासकों को प्रभावित किया।