मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न -79
प्रश्न- भारत में विविधता के किन्ही चार सांस्कृतिक तत्वों का वर्णन कीजिए और एक राष्ट्रीय पहचान के निर्माण में उनके आपेक्षिक महत्व का मूल्य निर्धारण कीजिए।
मॉडल उत्तरः- संस्कृति राष्ट्र-निर्माण में न केवल प्रमुख अवयव का कार्य करती है अपितु राष्ट्र के चरित्र को भी निर्धारित करती है। अतः भारत के बहु-संस्कृतिक रूप ने भारतीय राष्ट्र को एक पृथक चरित्र प्रदान किया है।
भारत में विविधता के चार प्रमुख सांस्कृतिक तत्व के रूप में हम धर्म तथा दर्शन, भाषा-साहित्य एवं कला को ले सकते हैं। धार्मिक विविधता भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण अभिलक्षण रही है। जिसे हम हिंदू धर्म के नाम से जानते हेैं वह किसी विशेष काल खंड में विकसित नहीं हुआ और न ही इसमें एक खास तत्व का योगदान है। आर्य तथा गैर-आर्य धार्मिक पंथों के मिश्रण से हिंदू धर्म का विकास हुआ। भक्ति, अवतारवाद तथा मूर्तिपूजा सभी गैर-आर्य पंथ की देन है। यहां धार्मिक विविधता का एक महत्वपूर्ण प्रमाण यह है कि भारत के अधिकांश भाग में देवी दुर्गा की पूजा होती है तो कुछ क्षेत्रों में महिषासुर की पूजा भी होती है। कम्बन के तमिल रामायण का झुकाव रावण की ओर है। आगे मध्यकाल में भी एकीकरण एवं समन्वय की प्रक्रिया चलती रही। इसका ज्वलंत प्रमाण भक्ति तथा सूफी आंदोलन। मध्यकाल में हिंदू एवं मुस्लिम दोनों साथ-साथ रहते हुए समन्वित संस्कृति का निर्माण किया। भक्ति एवं सूफी आंदोलन उसी समन्वित संस्कृति की अभिव्यक्ति है।
इसी प्रकार की विविधता दर्शन के क्षेत्र में भी मौजूद रही है। प्राचीन भारत में स्वतंत्र वाद-विवाद की लम्बी परपंरा रही है। अमर्त्य सेन ने अपनी पुस्तक ‘Argumentative Indian’ मे इस मुद्दे को उठाया है। विविधता का एक प्रमाण यह है कि हमारे कुछ प्राचीन चिंतक आत्मा को मानते है तो कुछ अनात्मवादी है। उसी प्रकार कुछ चिंतक कर्म एवं पुनर्जन्म का अवधारणा को मानते तो कुछ उन्हें अस्वीकार करते रहे हैं।
फिर भाषा साहित्य के क्षेत्रों में विविधता तो विदेशियों को भी अचम्भित करती रही है। भारत में अनेक भाषाएँ प्रचलित रही हैं, यथा हिंदी, बंगला, उड़िया, मैथिली, मराठी, गुजराती, तेलगु, तमिल, कन्नड़ आदि। इसके अतिरिक्त कला के क्षेत्र में कम विविधता देखने को नहीं मिलती। प्राचीनकाल में स्थापत्य कला की दो प्रमुख शैली नागर एवं द्रविड़ विकसित हुई थी फिर इन दोनों को मिलाकर वेसर शैली का विकास हुआ। समन्वय की प्रक्रिया मध्यकाल में भी चलती रही। मुस्लिम शासन के अंतर्गत मेहराबी तथा शहतीरी शैली के बीच सामंजस्य देखने को मिलता है। उसी प्रकार मूर्तिकला, चित्रकला आदि क्षेत्र में भी आभिजात्य तथा लोकतत्व के बीच सामंजस्य दिखता है।
सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि स्वतंत्रता के पश्चात् हमने इस विविधता को अपनी कमजोरी बनाने के बदले उसे अपनी शक्ति बना ली। हमारे संविधान निर्माताओं ने भी इस विविधता का सम्मान किया तथा संविधान की आठवीं अनुसूची में 14 भाषाओं को जगह दी। इसने पश्चिमी राष्ट्र के विपरीत जिसने एक भाषा एक राष्ट्र का नारा दिया था, भारत 14 राष्ट्रभाषा पर आधारित (वर्तमान में 22 भाषा) राष्ट्र बना। इस प्रकार भारत ने वैकल्पिक राष्ट्रवाद का मॉडल प्रस्तुत किया तथा इसे विविधता में एकता का नाम दिया गया।