मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न -92
प्रश्नः- फ्रांसीसी क्रान्ति 1789 का प्रभाव प्रारम्भ में यूरोप तक ही सीमित रहा परन्तु रूसी क्रान्ति 1917 का प्रभाव वैश्विक था। समालोचनात्मक रूप से पुनर्मूल्यांकन करें।
उत्तरः- फ्रांस की क्रान्ति एवं रूस की क्रान्ति विश्व इतिहास की दो महान घटनाएँ हैं। दोनों घटनाओं ने यूरोप एवं विश्व के राजनीतिक एवं सामाजिक ढाँचे को प्रभावित किया किन्तु दोनों के संगठन, स्वरूप एवं प्रभाव में अन्तर रहा था। जहाँ फ्रांस की क्रान्ति राष्ट्रीय मुद्दे से आरम्भ होकर क्रमिक रूप में अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव उत्पन्न किया वहीं रूस की क्रान्ति ने अपनी पहली यात्रा विश्व क्रान्ति के आदर्श के साथ आरम्भ की थी। उसका मौलिक लक्ष्य विश्व क्रान्ति ही था बस उसने अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किसी विशिष्ट राष्ट्र को अपना आधार बनाया। यही वजह है कि रूस की बोल्शेविक क्रान्ति की सफलता बहुत ही आरम्भ में वैश्विक सन्दर्भ से जुड़ गयी तथा एक ही साथ विभिन्न महाद्वीपों पर अपना प्रभाव छोड़नेे लगी।
फ्रांस की क्रान्ति ने फ्रांस के साथ पूरे यूरोपीय महाद्वीप पर क्रमिक रूप में प्रभाव छोड़ा था। वस्तुतः नेपोलियन के युद्धों के साथ ये धीरे-धीरे यूरोप में फैलती गयी। फिर फ्रांसीसी सम्पर्क से उदारवाद एवं राष्ट्रवाद यूरोप के अन्य क्षेत्रो में भी फैल गया। यूरोप पर इस क्रान्ति का इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि वियना कांग्रेस एवं यूरोप का अनुदारवादी नेतृत्व इस परिवर्त्तन को नहीं रोक सका। यूरोप से बाहर इसका प्रभाव आगे चलकर ही देखा गया एवं 19वीं सदी के अन्त में एशिया पर इसका प्रभाव पड़ा।
किन्तु रूस की बोल्शेविक क्रान्ति के लक्ष्य में विश्व पहले एवं रूस बाद में था। रूस तो विश्व क्रांति के लक्ष्य को प्राप्त करने का एक साधन था। इसकी अपील आरम्भ से ही वैश्विक थी। सोवियत रूस के बोल्शेविक सरकार का लक्ष्य अन्य क्षेत्रो में क्रांति का निर्यात करना था। अतः एक कम्युनिस्ट इन्टरनेशनल कमेटी की स्थापना की गयी ताकि मार्म्सवादी विचारधारा का तेजी से प्रसार हो सके। बोल्शेविक क्रान्ति के इसी विशिष्ट स्वरूप एवं सपफ़लता के कारण यूरोप के साथ एशिया एवं अमेरिका को भी हिला दिया। इसने जितना गहरा प्रभाव जर्मनी पर छोड़ा उतना ही अमेरिका पर। इसलिए बोल्शेविक क्रान्ति की सफलता के साथ ही पूँजीवादी देश इसके साथ संगठित होने लगे एवं शीघ्र्र ही इसे मित्र राष्ट्रों के आक्रमण का सामना करना पड़ा। फिर द्वितीय विश्व युद्ध के मघ्य भी इसे विघ्वंसक स्थिति का सामना करना पड़ा एवं अन्त में यह शीत युद्ध का प्रबल कारण बन गया।
इस प्रकार हम देखते हैं कि रूसी क्रान्ति आरम्भ से ही अपने प्रभाव में वैश्विक बना रही ।