Nov. 17, 2022

COP-27

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में मिस्र के शर्म-अल-शेख शहर में समाप्त हुए'संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन (COP-27) की बैठक पर "गंभीर चिंता" व्यक्त की गयी कि विकसित देश वित्त और शमन प्रतिबद्धताओं एवं अपने वायदों  से पीछे हट गए हैं। उन्होंने जीवाश्म ईंधन की खपत एवं उत्पादन में और वृद्धि की है।

"नुकसान और क्षति" के अवसरों तथा संबंधों के बावजूद, अनुकूलन अभी भी संयुक्त राष्ट्र जलवायु ढाँचे की प्रक्रिया में उचित और पर्याप्त ध्यान नहीं प्राप्त कर पा रहा है।

COP- 27 की बैठक के विषय

कार्बन बॉर्डर टैक्स :

  • 2021 में, यूरोपीय संघ (EU) ने कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) का प्रस्ताव लाया था , जो 2026 से सीमेंट और स्टील जैसी कार्बन-गहन वस्तुओं पर कर लगाएगा। COP-27 में अमेरिका, चीन, भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और कम विकसित देशों सहित कई देशों द्वारा इस पर रोष प्रकट किया गया।

वित्त सम्बंधित चर्चा :

  • COP-27 में  विशेष बल वित्त पोषण की समस्या को हल करने पर था। विकसित देश, विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए प्रत्येक वर्ष 100 अरब डॉलर जुटाने की घोषणा में बार-बार विफल रहे हैं।
  • सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य -इसी संदर्भ में भारत सहित विकासशील देश भी विकसित देशों को एक नए वैश्विक जलवायु वित्त लक्ष्य से सहमत होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं - जिसे जलवायु वित्त पर नए सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य (NCQG) के रूप में भी जाना जायेगा। इसके तहत विकसित देशों द्वारा 1 ट्रिलियन डॉलर का जलवायु वित्त प्रदान किये जाने की उम्मीद की जा रही है। 
  • मौसमी घटनाओं पर चर्चा  - "नुकसान और क्षति" - जलवायु-प्रेरित नुकसान के लिए देशों को मुआवजा देने पर सहमति व्यक्त करने हेतु UN सचिव के अनुसार प्रत्येक राष्ट्र द्वारा आगामी  5 वर्षों में खतरनाक मौसम की चेतावनी दी जाएगी।
  • 2013 में वारसा में हुए COP- 19 में, फिलीपींस के वार्ताकार द्वारा अपने देश में आयी आँधी के नुकसान की ओर ध्यान आकर्षित करवाया गया था। इस अवधारणा पर  "समझ का विस्तार" करने के लिए Warsaw International Mechanism की स्थापना की गई थी। इसी तर्ज पर चेतावनी प्रणाली विकसित करने में अपेक्षाकृत अधिक प्रगति पर बल दिया गया।

भारत द्वारा जलवायु संरक्षण हेतु किये गये कार्य 

  • भारत ने COP-27 में इक्विटी और सामान्य, लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं (CBDR-RC) के सिद्धांतों को दोहराने की आवश्यकता को रेखांकित किया। इक्विटी का अर्थ है कि प्रत्येक देश का कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का हिस्सा वैश्विक आबादी के अपने हिस्से के बराबर हो।
  • सामान्य किन्तु विभेदीकृत जिम्मेदारी -विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध कार्रवाई में विकासशील और अल्पविकसित देशों की तुलना में अधिक ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये क्योंकि विकसित होने की प्रक्रिया में इन देशों ने सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन किया है। विकसित देश जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे अधिक ज़िम्मेदार हैं। उदाहरण के रूप में, भारत की प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में मात्र10 वां हिस्सा है।
  • नेट-जीरो रणनीति - 2070 तक शुद्ध शून्य कार्बन अर्थव्यवस्था में संक्रमण का वादा किया। 
  • 2030 तक नवीकरणीय ईंधन से अपनी ऊर्जा जरूरतों का 50 प्रतिशत पूरा करने वादा किया तथा अपने अल्पकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रूपरेखा तैयार की।
  • 2021 में राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन लाया गया जोभारत को हरित हाइड्रोजन हब बनाने का लक्ष्य रखता है।
  • 2025 तक कम जीवाश्म ईंधन जलाने के लिए पेट्रोल के साथ 20 प्रतिशत इथेनॉल सम्मिश्रण जैसी स्वच्छ ऊर्जा योजनाएं लायी गयी। 
  • इलेक्ट्रिक वाहन परियोजनाओ का कार्यान्वयन 2070 तक तीन गुना बढ़ाना होगा। बिजली से चलने वाले चौपहिया वाहनों को सड़क यातायात का 70-80 प्रतिशत बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
  • वायुमंडल में प्रवेश करने से पहले ग्रीन हाउस गैस को हटाने के लिए कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS ) जैसे तरीकों का उपयोग करने संबधित प्रौद्योगिकियों को अपनाने हेतु निरंतर प्रयासरत है। 

भारत के समक्ष जलवायु संरक्षण सम्बंधित समस्या 

  • COP-27 में भारत को 2030 तक कार्बन न्यूट्रल बनने के लिए 85 ट्रिलियन रुपये से अधिक की लागत आ सकती है जो अतीत में हुईजलवायु वार्ता में फंडिंग की एक डील ब्रेकर रही है।
  • CCS  प्रौद्योगिकियां अत्यधिक महँगी हैं और अनिश्चित उपयोगिता की हैं। 
  • भारत में धान, गेहूँ और गन्ने जैसी लोकप्रिय फ़सलों की सघन खेती ने ज़मीन और पानी को ख़त्म कर दिया है।
  • माँस और डेयरी के लिए पशुधन पालन विशेष रूप से खतरनाक है क्योंकि मीथेन गैस (CH4) के उत्सर्जन में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की तुलना में 28 गुना अधिक ग्लोबल वार्मिंग की क्षमता है। 
  • ग्लोबल साउथ में उपलब्ध विकसित देशों की उपयुक्त नीतियां प्रासंगिक नहीं हैं।
  • COP समझौता हस्ताक्षरकर्त्ता सदस्य देशों पर गैर- बाध्यकारी है। इसलिए केवल कागजों में सिमटकर रह जाती हैं।
  • जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय स्रोतों की ओर स्थानांतरण महँगा है। इसलिए भारत चीन और ब्राज़ील जैसे बड़े विकाशसील देश कार्बन मुक्त भविष्य की ओर प्रतिबद्ध होते हुए भी जीवाश्म ईंधन पर भरोसा करने को रेखांकित करते हैं।    

आगे की राह

भारत के लिए, एक खाद्य प्रणाली दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो अनाज की फसल के उत्पादन पर अत्यधिक निर्भरता को कम करे तथा दालों, मोटे अनाज या बाजरा और फलियों की खेती में निवेश को बढ़ाए। 

भारत को एक स्पष्ट कृषि जल-उपयोग नीति बनानी चाहिए और अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को हतोत्साहित करना चाहिए जो चीनी एवं ताड़ के तेल की आवश्यकताओं को बढ़ाते हैं।

भारत की जैव ईंधन नीति, जो इथेनॉल पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करती है, पर भी पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य 

  • UNFCCC पर 1992 में पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में हस्ताक्षर किए गए थे, जिसे पृथ्वी शिखर सम्मेलन एवं  रियो शिखर सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है।
  • भारत जलवायु परिवर्तन (UNFCCC), जैव विविधता (CBD) और भूमि (UNCCD) तीनों रियो सम्मेलनों के तहत शामिल किये गये। 
  • UNFCCC 1994 में लागू हुआ और 197 देशों द्वारा इसकी पुष्टि की गई।
  • यह 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल की मूल संधि है जो 2015 के पेरिस समझौते का भी मूल आधार बनी। 
  • UNFCCC का  सचिवालय बॉन, जर्मनी में स्थित है।
  • इसका उद्देश्य वातावरण में ग्रीनहाउस गैस सांद्रता को एक ऐसे स्तर पर स्थिर करना है।
  • COP – राष्ट्र प्रतिनिधियों का सम्मलेन cop  कहलाता है।
  • IPCC - यह जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान का आकलन संबंधित विज्ञान का आकलन करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था है।
  • स्थापना -1988 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा।
  • IPCC आकलन जलवायु संबंधी नीतियों को विकसित करने के लिए सभी स्तरों पर सरकारों के लिए एक वैज्ञानिक आधार प्रदान करते हैं और वे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन - संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) में विचार-विमर्श करते हैं।

संभावित प्रश्न

प्र .       निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये-

1. अनुलग्नक-I देश                    -            कार्टाजेना प्रोटोकॉल

2. प्रमाणित उत्सर्जन में कमी       -            नागोया प्रोटोकॉल

3. स्वच्छ विकास तंत्र                -            क्योटो प्रोटोकॉल

ऊपर दिए गए युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(a) 1 और 2                                           (b) 2 और 3

(c) केवल 3                                            (d) 1, 2 और 3

मुख्य परीक्षा प्रश्न

प्र . जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के पार्टियों के सम्मेलन (COP) के 27वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिए। भारत द्वारा सम्मेलन में की गई प्रतिबद्धताएं क्या हैं?