Dec. 26, 2022

महिलाओं की शिक्षा पर तालिबानी प्रहार

प्रश्न पत्र- 2 (अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध)

स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस, द हिन्दू 

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान द्वारा विश्वविद्यालयों में महिलाओं की शिक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा के बाद यह विश्व का एकमात्र देश बन गया, जहाँ महिलाओं को शिक्षा तक पहुंच से वंचित रखा गया है।
  • वर्तमान तालिबान शासन, 1996-2001 के शासन से अलग है क्योंकि इसमें महिला नागरिकों के खिलाफ कार्रवाइयां, सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने और कार्यान्वयन का अधिकार वापिस लाया गया है जो तालिबान को 1990 के दशक में शरिया कानून के अनुरूप प्रतिगामी, अधिनायकवादी, स्त्री विरोधी शासन की ओर वापस लौटने का इशारा करता है।

पृष्ठभूमि

  • तालिबान ने पहली बार 2021 में माध्यमिक विद्यालयों में जाने वाली लड़कियों पर प्रतिबंध लगा दिया और  इसे "अस्थायी निलंबन" कहा था जिसका विस्तृत रूप हाल में देखने को मिला।
  • अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्रालय के अनुसार, अनेक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय तालिबान शासन के खिलाफ महिलाओं की शिक्षा को "हथियार बनाने" का काम कर रहे हैं और उसने कहा कि इसके 34 प्रांतों में से 31 में लड़कियों को माध्यमिक शिक्षा तक पहुंच प्रदान की गयी है।
  • महिलाएं पहले कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में भाग ले सकती थीं, जिन्हें तालिबान ने लैंगिक आधार पर समय सारिणी से  अलग कर दिया तथा महिला शिक्षकों को चिकित्सा और कानून प्रवर्तन सहित एक निश्चित पेशे में काम करने से रोक दिया ।
  • अधिकांश सरकारी विभागों में, महिला कर्मचारियों से अनुरोध किया गया था कि वे वेतन में कटौती करें और सप्ताह में एक बार आएं।
  • तालिबान द्वारा महिलाओं की अदृश्यता अब गति पकड़ रही है क्योंकि उन्हें सार्वजनिक पार्कों, हमामों (सार्वजनिक स्नान की जगह) और व्यायामशालाओं में जाने से प्रतिबंधित कर दिया गया।

वैश्विक प्रतिक्रिया

  • सऊदी अरब, यू.ए.ई. और पाकिस्तान, तीन देशों ने 1996-2001 के तालिबान शासन को मान्यता दी थी किन्तु इस बार इसे मान्यता देने से दूरी बनाए रखी है।
  • तुर्की, कतर और इंडोनेशिया ने महिला शिक्षा पर प्रतिबंध को इस्लाम के खिलाफ बताते हुए इस प्रतिबंध को मानने से इंकार किया है।
  • G-7 देशों ने जर्मनी के साथ तालिबान के फैसले के खिलाफ एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसमें चेतावनी दी गई कि तालिबान का "लैंगिक उत्पीड़न” रोम संविधि के तहत मानवता के खिलाफ अपराध हो सकता है।
  • इसके अलावा, भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, अमेरिका आदि जैसे देशों  ने तालिबान को मान्यता देने के लिए लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा का समान अधिकार तथा एक समावेशी और प्रतिनिधि सरकार बनाने की पूर्व शर्त रखी।  
  • किन्तु तालिबान, शर्तों को पूरा करने के लिए तैयार नहीं है। यह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का लाभ उठाने और अफगानिस्तान में प्रभाव के लिए क्षेत्रीय शक्तियों के बीच भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से लाभ प्राप्त करने पर बल दे रहा है।
  • हालिया खबरों के अनुसार, 20 मिलियन अफगानों को भुखमरी का सामना करना पड़ रहा है  और लाखों लोग अंतर्राष्ट्रीय सहायता पर निर्भर हैं, इसलिए अफगानिस्तान को प्रदत्त सहायता में कटौती करना कोई विकल्प नहीं है।

तालिबान और भारत

  • भारत ने एक "समावेशी और प्रतिनिधि" सरकार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को भी दोहराया जो सभी अफगानों के अधिकारों का सम्मान करती है और उच्च शिक्षा तक पहुंच सहित अफगान समाज के सभी पहलुओं में भाग लेने के लिए महिलाओं के समान अधिकार सुनिश्चित करती है।
  • ISIS और अल-कायदा के अलावा, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे पाकिस्तानी मूल के आतंकवादी समूह कथित तौर पर अफगानिस्तान में मौजूद हैं। तालिबान से संबंध भारत की आन्तरिक सुरक्षा पर प्रभाव डाल सकता है। 
  • इस प्रकार, काबुल में भारत की उपस्थिति किसी तरह यह सुनिश्चित करेगी कि भारत के खिलाफ अफगान मिट्टी का उपयोग न किया जाये।
  • साथ ही, तालिबान और पाकिस्तान के बीच हाल के तनावपूर्ण संबंधों के कारण, भारत के पास अपनी परियोजनाओं; जैसे- सद्भावना के कारण अफगानिस्तान में कुछ खोए हुए प्रभाव को पुनः प्राप्त करने का अवसर है।

निष्कर्ष

  • पश्चिम रूस के यूक्रेन पर आक्रमण में व्यस्त होने के कारण आर्थिक और भू-राजनीतिक संकट एवं थोड़े आंतरिक दबाव के कारण तालिबान शासन का मानना है कि यह दंडमुक्ति के साथ नागरिकों के अधिकारों, विशेष रूप से महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है।
  • ऐसी परिस्थिति में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के प्रतिबंधों को मान्यता दी जानी चाहिए और बहुपक्षीय मंचों पर शीघ्रता से इसका समाधान किया जाना चाहिए।

 

मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न

प्रश्न - तालिबान शासन के तहत अफगानिस्तान में वर्तमान परिदृश्य और भारत के लिए अफगानिस्तान के महत्व पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द)