Aug. 1, 2023
वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023
वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023
चर्चा में क्यों ?
26 जुलाई, 2023 को लोकसभा द्वारा पारित वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 दशकों पुराने वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में संशोधन करने का प्रयास करता है। हालाँकि, इस अधिनियम पर कुछ विवाद भी हुए हैं।
प्रयोज्यता को सीमित करना
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1996 के अपने एक निर्णय में वन संरक्षण (FC) अधिनियम को उन सभी भूमियों पर लागू किया, जो या तो 'वन' के रूप में दर्ज थीं या जंगल के अर्थ से मिलती-जुलती थीं। FC अधिनियम भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत वनों के रूप में अधिसूचित क्षेत्रों पर लागू होता था।
- FC अधिनियम को वन के रूप में दर्ज सभी भूमि और उनकी भूमि की स्थिति की परवाह किए बिना सभी स्थायी वनों पर लागू कर दिया गया, जिससे "विकास या उपयोगिता-संबंधी कार्य" पर रोक लग गई।
- इसके अलावा, विधेयक के कारणों के विवरण में, निजी और गैर-वन भूमि पर लगाए गए वृक्षारोपण में FC अधिनियम की "प्रयोज्यता के बारे में अनेक आशंकाएं व्याप्त हैं" ये मुद्दे भी प्रश्नों के घेरे में रहे।
- एक उपाय के रूप में, विधेयक का प्रस्ताव है कि अधिनियम केवल अधिसूचित वन भूमि और सरकारी रिकॉर्ड पर वन के रूप में पहचानी गई भूमि पर लागू होगा, ऐसे वनों को छोड़कर, जिन्हें 1996 के SC के आदेश से पहले ही अन्य उपयोग में लाया गया था।
राज्यों की आपत्तियां
- विधेयक का अन्य प्राथमिक लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के 100 किमी. के भीतर और "वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों" में रणनीतिक महत्व, राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक उपयोगिता की "फास्ट ट्रैक करने की आवश्यकता" को पूरा करना है।
- हिमाचल प्रदेश, में अधिनियम 'राष्ट्रीय महत्व और राष्ट्रीय सुरक्षा' को परिभाषित करवाना चाहता है और छत्तीसगढ़, इसमें सुरक्षा से संबंधित बुनियादी ढांचे और उपयोगकर्त्ता एजेंसियों के प्रकारों के "स्पष्ट रूप से उल्लेख" की माँग कर रहा है।
- मिजोरम के अनुसार, “यह किसी भी एजेंसी द्वारा रैखिक परियोजना की परिभाषा के तहत आने वाली किसी भी गतिविधि को राष्ट्रीय महत्व या राष्ट्रीय सुरक्षा की परियोजना के रूप में उल्लेखित करता है क्योंकि सभी कार्य किसी न किसी तरह से राष्ट्रीय महत्व के हैं और राज्यों में किसी भी कार्य को संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा की संज्ञा दी जा सकती है।”
- सिक्किम छोटे राज्यों में से एक था, जिसने कहा था कि सीमाओं से 100 किमी. की छूट देने से "पूरा राज्य इसमें समाहित हो जाएगा और प्राचीन वन क्षेत्र खुल जाएंगे", अतः इसमें प्रस्तावित छूट की सीमा को घटाकर 2 किमी. कर दिया जाए।
- BRO और अरुणाचल प्रदेश के अनुसार चीन के साथ "बुनियादी ढांचे के अंतर" को कम करने के लिए 100 किमी. की छूट सीमा को 150 किमी. तक बढ़ाया जाना चाहिए।
वृक्षारोपण पर बल देना
- मंत्रालय के अनुसार, "सहमति, डायवर्जन से नष्ट हुए प्राकृतिक वनों को वृक्षारोपण से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है।" प्रस्तावित विधेयक कार्बन सिंक को बढ़ाने के लिए निजी भूमि में वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करता है।
- वन मंजूरी के लिए एक आवश्यक शर्त है कि एक डेवलपर को समतुल्य गैर-वन भूमि पर प्रतिपूरक वनीकरण करना होगा या गैर-वन भूमि उपलब्ध नहीं है, तो डायवर्ट किए गए वन क्षेत्र की दोगुनी सीमा तक निम्नीकृत वन भूमि पर कार्य करना होगा। चूँकि यह वन भूमि की माँग पर एक प्रभावी जाँच के रूप में काम करती है।
- जून, 2022 में, सरकार ने वन संरक्षण नियमों में संशोधन किया गया था ताकि डेवलपर्स को "उस भूमि पर, जिस पर [FC] अधिनियम लागू नहीं है" वृक्षारोपण करने की अनुमति दी जा सके और प्रतिपूरक वनीकरण की बाद की आवश्यकताओं के विरुद्ध ऐसे भूखंडों की अदला-बदली की जा सके।
- "गैर-वन भूमि पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से, ऐसी भूमि को अधिनियम के दायरे से बाहर रखने के लिए विधेयक में स्पष्टता प्रदान की गई है।"
- विधेयक संभावित रूप से भारत के 28% वनों को बाहर करता है यानी 5,16,630 वर्ग किमी. में से 1,97,159 वर्ग किमी. वन रिकॉर्ड किए गए वन क्षेत्रों के बाहर हैं।
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