June 20, 2023
मियावाकी उद्यान, सौर ऊर्जा से चलने वाला रिएक्टर, भारत - वियतनाम, गांधी शांति पुरस्कार
मियावाकी उद्यान
चर्चा में क्यों ?
प्रधानमंत्री के द्वारा मन की बात में केरल के एक शिक्षक रफी रामनाथ की चर्चा करते हुए मियावाकी तकनीक को बढ़ावा देने की बात चर्चा की गयी।
मियावाकी पद्धति (Miyawaki Method) क्या है?
- यह वृक्षारोपण की एक जापानी विधि है।
- इसका प्रतिपादन प्रसिद्ध जापानी वनस्पतिशास्त्री (botanist) अकीरा मियावाकी के द्वारा किया गया था।
- इस पद्धति के द्वारा आवासीय स्थलों के आस-पास खाली पड़े स्थानों को छोटे बागानों या जंगलों में बदला जा सकता है।
- इस पद्धति में पौधों को एक-दूसरे से कम दूरी पर लगाया जाता है, ताकि पौधे सूर्य का प्रकाश प्राप्त कर ऊपर की ओर वृद्धि कर सकें, किंतु सघनता के कारण नीचे उगने वाले खरपतवार को प्रकाश नहीं मिल पाता है।
- आमतौर पर, जंगलों को पारंपरिक विधि से उगने में कम से कम 100 वर्ष का समय लगता है, जबकि मियावाकी पद्धति से उन्हें केवल 20 से 30 वर्षों में ही उगाया जा सकता है। इसका इस्तेमाल बंजर भूमि को एक मिनी जंगल में बदलने के लिए किया जाता है।
- केरल के शिक्षक रफ़ी रामनाथ के द्वारा 115 किस्मों के पेड़ लगाकर एक बंजर भूमि को ‘विद्यावनम’ नामक एक छोटे से जंगल में बदलने के लिए मियावाकी तकनीक का इस्तेमाल किया गया।
- इस पद्धति में प्रत्येक वर्ग मीटर के भीतर दो से चार अलग-अलग प्रकार के स्वदेशी पेड़ लगाना शामिल है। इस विधि में पेड़ आत्मनिर्भर हो जाते हैं और तीन साल के भीतर वे अपनी पूरी लंबाई तक बढ़ जाते हैं, उन्हें खाद और पानी देने जैसे नियमित रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती है।
- हाल ही में जलवायु परिवर्तन से लड़ने, प्रदूषण के स्तर पर अंकुश लगाने और वित्तीय राजधानी के हरित क्षेत्र को बढ़ाने के लिए, बृहदबंबई नगर निगम (BMC) मुंबई के कई खुले क्षेत्रों में मियावाकी जंगलों का निर्माण कर रहा है।
मुंबई में मियावाकी पद्धति उपयोगी कैसे ?
- स्वदेशी वृक्षों का घना हरा आवरण उस क्षेत्र के धूल कणों को अवशोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- पौधे सतह के तापमान को नियंत्रित करने में भी मदद करते हैं। मुंबई में चल रही रियल एस्टेट मेट्रो रेल निर्माण जैसी कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के कारण वहाँ के कुछ हिस्सों की सतह का तापमान बढ़ रहा है जिसे नियंत्रित करने में मियावाकी पद्धति कारगर सिद्ध हो सकती है।
लाभ :
- यह पद्धति कम समय में सामान्य से अधिक सघन वन बनाने में मदद करती है। इस प्रक्रिया में पौधों की वृद्धि 10 गुना अधिक तेजी से होती है और वनस्पति सामान्य से 30 गुना अधिक सघन पायी जाती है।
- मियावाकी वन भी उस क्षेत्र में रहने वाली बहुत सी प्रजातियों के आवास के रूप में कार्य करते हैं।
- यह वन हवा, पानी, शोर और मिट्टी के प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
- वन भारी बारिश में मिट्टी की ऊपरी परत को बहने से रोकने का काम करते हैं क्योंकि पेड़ एक दूसरे के करीब लगाए जाते हैं और पेड़ों की जड़ें मिट्टी को जकड़ कर रखती हैं।
- यह विधि पेड़ों को सीधी धूप से बचाती है और जंगल में आग लगने की संभावना को भी काफी हद तक कम करती है।
हानि :
- इसमें ज्यादातर इमारती लकड़ी के वृक्षों को प्राथमिकता दी जाती है जो वृक्षों की विविधता के साथ जैव विविधता के लिए खतरा हो सकता है।
- वनीकरण की यह विधि केवल उप-शहरी या शहरी क्षेत्र में छोटे स्थानों के लिए उपयुक्त है, लेकिन उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए नहीं है।
- एक मियावाकी वन में पेड़ों के बीच जगह की कम उपलब्धता के कारण वन्यजीव प्रजातियों की आवाजाही प्रतिबंधित रहती है।
सौर ऊर्जा से चलने वाला रिएक्टर
चर्चा में क्यों ?
- कैंब्रिज के शोधकर्त्ताओं द्वारा एक सौर-संचालित रिएक्टर विकसित किया गया है जो कार्बन डाइऑक्साइड को एक उपयोगी टिकाऊ ईंधन में बदलने के लिए प्लास्टिक कचरे का उपयोग करता है।
रिएक्टर के बारे में –
- रिएक्टर अपशिष्ट प्लास्टिक का उपयोग कर कार्बन डाइऑक्साइड को सिनगैस में परिवर्तित कर सकता है।
- रिएक्टर सिनगैस के निर्माण की प्रक्रिया में कुछ अन्य उपयोगी रसायनों का भी उत्पादन करता है।
- इसके द्वारा इस्तेमाल की गई प्लास्टिक की बोतलों को ग्लाइकोलिक एसिड में बदला जाता है। ग्लाइकोलिक एसिड स्वास्थ्य सेवा उद्योग में विभिन्न प्रकार से उपयोग में आता है। WebMD के अनुसार, इसका उपयोग लोगों द्वारा समय से पहले त्वचा की उम्र बढ़ने, डार्क स्किन पैच और मुंहासों के निशान के इलाज के लिए किया जाता है।
प्रयोग
- "मध्यम अवधि में, इस तकनीक का उपयोग कार्बन उत्सर्जन को उद्योग (बिजली संयंत्र, सीमेंट कारखाने, बायोगैस संयंत्र) से कैप्चर करके और सूरज की रोशनी और प्लास्टिक कचरे का उपयोग करके ईंधन में बदलकर कम करने के लिए किया जा सकता है।
- लंबी अवधि में, इसका उपयोग प्रत्यक्ष वायु कैप्चर (DAC) और CO2 के रूपांतरण के लिए किया जा सकता है।
- इसके अलावा अनुसंधान समूह द्वारा प्रकाश संश्लेषण से प्रेरित शुद्ध-शून्य कार्बन ईंधन बनाने वाली तकनीकों को बनाने में "कृत्रिम पत्ते" भी शामिल किये हैं, जो कार्बन डाइऑक्साइड को प्रोपेनोल और इथेनॉल में परिवर्तित कर सकते हैं।
- हाल ही में उनके लिए सौर-ऊर्जा से संचालित सभी प्रयोगों में एक सिलेंडर से शुद्ध कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग किया गया है। यह तकनीक कार्बन कैप्चर और स्टोरेज पर निर्भर है।
- कार्बन कैप्चर और स्टोरेज तकनीक जो जीवाश्म ईंधन उद्योग में सबसे लोकप्रिय है परंतु कार्बन डाइऑक्साइड को पकड़ने और संग्रहीत करने के बजाय, अगर इसे पकड़ा और उपयोग किया जा सकता है, तो यह कार्बन को जमीन में दफनाने के बजाय कुछ अन्य उपयोगी कार्यो में लगा सकता है।
- इसकी रूपांतरण प्रक्रिया में नाइट्रोजन और ऑक्सीजन जैसी अन्य गैसें बाहर निकलती हैं और हवा में कार्बन डाइऑक्साइड को केंद्रित करती है।
- सिस्टम में दो भाग होते हैं- एक तरफ, कार्बन डाइऑक्साइड क्षारीय घोल है जो कार्बन डाइऑक्साइड को पकड़ता है, जो सिनगैस में बदल जाता है। दूसरी तरफ, प्लास्टिक ग्लाइकोलिक एसिड में परिवर्तित हो जाते हैं।
भारत - वियतनाम
चर्चा में क्यों?
- केंद्रीय रक्षा मंत्री द्वारा वियतनाम के साथ हालिया द्विपक्षीय बैठक में स्वदेश निर्मित INS कृपाण मिसाइल कार्वेट उपहार में देने की घोषणा की गयी।
आईएनएस कृपाण
- युद्धपोत INS कृपाण मिसाइल जलपोत 1,350 टन विस्थापित करने वाली के खुखरी श्रेणी की मिसाइल कार्वेट है
- कार्वेट एक छोटा युद्धपोत होता है। यह परंपरागत रूप से पोत का सबसे छोटा वर्ग है।
- इसका निर्माण गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स के द्वारा किया गया था। भारत द्वारा इसे 12 जनवरी, 1991 को नौसेना में शामिल किया गया था।
- मध्यम आकार के इस युद्धपोत के शस्त्रागार में सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलें, एक मध्यम दूरी की बंदूक, एंटी एयरक्राफ्ट शोल्डर-लॉन्च मिसाइल और क्लोज इन वेपन सिस्टम शामिल हैं
- यह सतह और हवाई निगरानी राडार के साथ-साथ बंदूकों के लिए अग्नि नियंत्रण राडार से लैस है। इसमें लगी मिसाइल 85 किमी. तक के लक्ष्य को भेद सकती है, जबकि इसकी एंटी-एयरक्राफ्ट गन 15 किमी. की रेंज में प्रति मिनट 5000 राउंड फायर कर सकती है।
- इसके अलावा भारत ने वियतनामी सशस्त्र बलों में क्षमता निर्माण के लिए वायु सेना अधिकारी प्रशिक्षण स्कूल में एक भाषा और IT लैब की स्थापना के लिए दो सिमुलेटर और मौद्रिक अनुदान देने की भी घोषणा की है।
गांधी शांति पुरस्कार
चर्चा में क्यों ?
- भगवद गीता, रामायण और उपनिषद जैसे धार्मिक ग्रंथों के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक गीता प्रेस, गोरखपुर को 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
गीता प्रेस के बारे में
- 1923 में स्थापित, गीता प्रेस दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है, जिसने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिनमें 16.21 करोड़ श्रीमदभगवद गीता शामिल हैं।
- यह 2023 में यह अपनी स्थापना के 100 साल पूरे करने जा रहा है। गीता प्रेस अपने संबद्ध संगठनों के साथ, जीवन की बेहतरी और सभी की भलाई के लिए प्रयास करता रहा है।
- गीता प्रेस को पुरस्कार प्रदान करने का निर्णय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक जूरी के द्वारा लिया गया है।
- गीता प्रेस को "अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन हेतु उत्कृष्ट योगदान" को मान्यता देने के लिए यह पुरस्कार दिया गया है ।
- गीता प्रेस का उद्देश्य "सनातन धर्म, हिंदू धर्म के सिद्धांतों को गीता, रामायण, उपनिषद, पुराण, प्रख्यात संतों के प्रवचन और अन्य चरित्रों को प्रकाशित करके आम जनता के बीच प्रचारित करना और फैलाना है।"
महात्मा गांधी पुरस्कार के बारे में
- महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर 1995 में वार्षिक गांधी शांति पुरस्कार की स्थापना की गई थी। पुरस्कार में ₹1 करोड़ की राशि, एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका और एक उत्कृष्ट हस्तकला या हथकरघा वस्तु शामिल है।
- यह पुरस्कार दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला, सामाजिक कार्यकर्ता बाबा आमटे, दक्षिण अफ्रीका के आर्कबिशप डेसमंड टूटू, पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट और बांग्लादेश के बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान को भी दिया गया है।
- पिछले पुरस्कार विजेताओं में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, रामकृष्ण मिशन, बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक, विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी और सुलभ इंटरनेशनल, नई दिल्ली जैसे संगठन शामिल हैं।
- आलोचकों के अनुसार गीता प्रेस, गांधी पुरस्कार का एक उपहास है