July 1, 2023
विश्व MSME दिवस - 2023, भारत-मिस्र संबंध, मैतेई समुदाय
विश्व MSME दिवस - 2023
चर्चा में क्यों ?
- 2017 में, संयुक्त राष्ट्र ने 27 जून को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) दिवस के रूप में नामित किया, इसके द्वारा न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था में MSME के योगदान, बल्कि उनकी भूमिका को भी सम्मानित किया गया।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, MSME दुनिया भर में 90% व्यवसायों, 60% से 70% से अधिक रोजगारों और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के आधे हिस्से में योगदान देता है।
MSME के बारे में
- सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम यानी छोटे और मध्यम स्तर के व्यवसाय का नियमन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (MoMSME) द्वारा किया जाता है।
- MSME के भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान के कारण इसे भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है। ये सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को, नवाचार और रचनात्मकता को बढ़ावा देने में सहायक हो सकते हैं।
- MSME आपूर्तिकर्त्ताओं को बड़े व्यवसायों के द्वारा भुगतान में देरी के कारण परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
- भारत में भी, MSME भारत की GDP में लगभग 33% योगदान देकर और लगभग 63 मिलियन उद्यमों में 110 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार देकर देश के आर्थिक विकास में रणनीतिक भूमिका निभाते हैं।
- ये न केवल भारत की 45% विनिर्मित वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, बल्कि कुल निर्यात में 50% से अधिक का योगदान भी करते हैं और पारंपरिक से लेकर उन्नत तकनीकी वस्तुओं तक, अतिरिक्त मूल्य के साथ 8,000 से अधिक उत्पादों का निर्माण करते हैं।
विश्व MSME दिवस- 2023 के बारे में
- 27 जून को "सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम दिवस" के रूप में संयुक्त राष्ट्र के द्वारा नामित किया गया।
थीम :
- भारत में MSME दिवस- 2023 का विषय "भारत@100 हेतु भविष्य के लिए तैयार MSME" है।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक परिषद की 2023 की थीम "एक साथ मजबूत भविष्य का निर्माण" है।
- वैश्विक संस्था द्वारा #Brand10000MSMEs नेटवर्क भी लॉन्च किया जा रहा है, जो एक गतिशील मंच है जहाँ दुनिया भर के MSME जुड़ सकते हैं, सीख सकते हैं और एक साथ बढ़ सकते हैं।
- MSME मंत्रालय MSME की वृद्धि और विकास के लिए क्लस्टर परियोजनाओं एवं प्रौद्योगिकी केंद्रों की जियो-टैगिंग के लिए चैंपियंस 2.0 पोर्टल और मोबाइल ऐप जैसी विभिन्न पहलें शुरू करेगा। कार्यक्रम के दौरान 'MSME आइडिया हैकथॉन 2.0' के परिणाम घोषित किए जाएंगे और महिला उद्यमियों के लिए 'MSME आइडिया हैकथॉन 3.0' लॉन्च किया जाएगा।
'MSME आइडिया हैकथॉन 3.0' के बारे में
- इसका उद्देश्य MSME के लिए व्यापार सुगम वातावरण में सुधार करना, नए उत्पादों एवं सेवाओं के नवाचार और विकास को प्रोत्साहित करना, क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देना एवं क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना, घरेलू और वैश्विक दोनों बाजारों में अवसर पैदा करना और MSME को संधारणीय प्रणालियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है।
विश्व MSME दिवस का महत्व
- यह MSME अर्थव्यवस्थाओं को बदलने, रोजगार सृजन को बढ़ावा देने और समान आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की क्षमता रखता है।
- MSME समाज के सबसे कमजोर वर्ग को वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान करते हैं।
- पंजीकृत MSME में महिलाओं के रोजगार की दर लगभग 24% है, जबकि अपंजीकृत उद्यमों में यह 13.02% बताई गई है।
- वित्तीय समावेशन, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है क्योंकि क्रेडिट आवश्यकताओं का सामना करने वाली 80% महिला-स्वामित्व वाले व्यवसाय अपने सपने को पूरा नहीं कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवसथा में लगभग 1.7 ट्रिलियन डॉलर का वित्तपोषण अंतराल देखने को मिलता है।
- MSME दिवस श्रमिकों और पर्यावरण को लाभ सुनिश्चित करने हेतु लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं का समर्थन करते हैं। आपूर्ति श्रृंखलाएं वैश्विक व्यापार और वाणिज्य का एक महत्वपूर्ण घटक हैं जो संघर्ष, आपदाएं तथा महामारी एवं उनके कामकाज को तेजी से प्रभावित कर सकती हैं, लागत बढ़ा सकती हैं और लेनदेन को कठिन बना सकती हैं।
- इसका मुख्य उद्देश्य MSME की भूमिका को उजागर करना और उन्नति के अवसरों का पता लगाना है। ये कार्यक्रम छोटे व्यवसाय मालिकों को उद्यमशीलता एवं चुनौतियों की चर्चा हेतु एक मंच प्रदान करते हैं, जबकि सरकारें, अंतर्राष्ट्रीय संगठन और व्यावसायिक सहायता संगठन समर्थन के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हैं।
पुजारियों की नियुक्ति में जाति की भूमिका
चर्चा में क्यों ?
- हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय के द्वारा कहा गया कि मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति में जाति की कोई भूमिका नहीं है अर्थात जाति या पंथ की परवाह किए बिना किसी भी व्यक्ति को अर्चक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, यदि वह आवश्यक धार्मिक ग्रंथों और अनुष्ठानों का जानकार है।
याचिका का कारण
- मुथु सुब्रमण्यम गुरुकल द्वारा 2018 में एक याचिका दायर की गयी थी, जिसके अंतर्गत सलेम के श्री सुगवनेश्वर स्वामी मंदिर में अर्चागर/स्थानिगर (मंदिर के पुजारी को अर्चक के नाम से भी जाना जाता है) के पद के लिए नौकरी की घोषणा को चुनौती दी गई थी।
- याचिका के तहत तर्क दिया गया कि नियुक्तियों में मंदिर द्वारा पालन किए जाने वाले विशिष्ट आगम (मंदिर अनुष्ठानों को नियंत्रित करने वाले शास्त्र) सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक है और नौकरी का विज्ञापन याचिकाकर्त्ता और प्राचीन काल से सेवारत लोगों के वंशानुगत अधिकार का उल्लंघन करता है।
प्रमुख बिंदु
- न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश के अनुसार मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति आगम द्वारा शासित होगी और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए पुजारी की जाति, धर्म का अभिन्न अंग नहीं है।
- जाति या पंथ की परवाह किए बिना किसी भी व्यक्ति को अर्चक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, यदि वह आवश्यक धार्मिक ग्रंथों और अनुष्ठानों का जानकार है।
- सुप्रीम कोर्ट ने “धार्मिक भाग और धर्मनिरपेक्ष भाग के बीच अंतर किया और माना कि अर्चक द्वारा की गई धार्मिक सेवा धर्म का धर्मनिरपेक्ष हिस्सा है और धार्मिक सेवा का प्रदर्शन धर्म का अभिन्न अंग है। इसलिए, आगम द्वारा प्रदान की गयी रीति केवल तभी महत्व रखती है, जब धार्मिक सेवा के प्रदर्शन की बात आती है। परिणामस्वरूप, किसी भी जाति या पंथ से संबंधित किसी भी व्यक्ति को अर्चक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, बशर्ते वह आगमों और मंदिर में किए जाने वाले आवश्यक अनुष्ठानों में पारंगत और निपुण व्यक्ति हो।
एम. चोकलिंगम समिति
- मद्रास कोर्ट के अनुसार 2022 में, सेवानिवृत्त मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एम. चोकलिंगम के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया गया जिसमें किसी राज्य में मंदिरों की पहचान गैर-आगम अभ्यास, आगम (शास्त्र-आधारित) का पालन करने या न करने पर की जाएगी।
- उच्च न्यायालय के अनुसार मंदिरों में नियुक्तियाँ, समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट दाखिल करने से पहले भी सामान्य रूप से जारी रह सकती हैं, यदि किसी विशिष्ट मंदिर के लिए पालन किए जाने वाले विशेष आगम के बारे में कोई संदेह न हो।
सुगवनेश्वर स्वामी मंदिर के बारे में
- इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी के दौरान मामनन सुंदर पांडियन ने करवाया था। पुराणों के अनुसार, ओव्वैयार ने मंदिर में विनायक की पूजा की और इस मंदिर में कैलायम के लिए प्रस्थान किया। मंदिर में चेर, चोल और पांड्य के विभिन्न ऐतिहासिक चिन्ह भी हैं।
- सुगवनेश्वर मंदिर का प्रवेश द्वार दक्षिण की ओर है और मंदिर पूर्व की ओर दिखता है। सामने का मंडपम और थिरु नंथी मंडपम मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने स्थित है। प्रवेश द्वार के दक्षिण में विनयगर स्थित है।
- सुगवनेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर के मुख्य देवता लिंगम रूप में भगवान शिव हैं जिन्हें सुगवनेश्वर और उनकी पत्नी को ‘श्री स्वर्णबिकाई अम्मन’ के नाम से जाना जाता है।
भारत-मिस्र संबंध
चर्चा में क्यों ?
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की काहिरा यात्रा मिस्र नेता अब्देल फतह अल-सिसी की यात्रा पर आधारित थी जो भारत की गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि थे।
अन्य प्रमुख बिंदु
- जनवरी मुलाकात में दोनों पक्ष द्विपक्षीय संबंधों को "रणनीतिक साझेदारी" तक बढ़ाने पर सहमत हुए थे। पीएम मोदी की यात्रा के दौरान इस आशय के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
- राष्ट्रपति अल-सिसी ने अपनी "भारत इकाई" के साथ साझेदारी के महत्व से अवगत कराया, जिसमें प्रधानमंत्री मुस्तफा मदबौली के साथ काम करने वाले सात कैबिनेट मंत्री शामिल थे। इसके अलावा, पीएम मोदी को मिस्र के सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ द नाइल’ से भी सम्मानित किया गया।
ऑर्डर ऑफ द नाइल क्या है?
- ऑर्डर ऑफ द नाइल की शुरुआत सन् 1915 में हुई।
- यह सम्मान मिस्र की ओर से किसी देश के राष्ट्राध्यक्षों, राजकुमारों और उपराष्ट्रपतियों को दिया जाता है जिन्होंने मानवता के क्षेत्र में अनमोल सेवाएं प्रदान की हैं।
- यह पुरस्कार दरअसल सोने के एक कॉलर जैसा दिखता है। सोने की यूनिट्स पर फैरोनिक प्रतीक शामिल होते हैं। सोने की पहली यूनिट राज्य को बुराईयों से बचाने के विचार को दर्शाती है, दूसरी यूनिट नाइल नदी की तरफ से लायी जाने वाली समृद्धि और खुशी से मिलती- जुलती है। जबकि तीसरी यूनिट धन और सहनशक्ति की प्रतीक है।
भारत-मिस्र संबंधों के बारे में
- 1956 में स्वेज नहर पर मिस्र का कब्ज़ा, 1967 में अरब-इज़राइल युद्ध में इसकी हार और 1977 में इज़राइल को इसकी मान्यता सहित कई घटनाओं ने मिस्र को पश्चिम एशिया की भूराजनीति के केंद्र में बनाए रखा है।
- भारत ने मिस्र को गेहूं भेजा क्योंकि यह दुनिया का सबसे बड़ा अनाज आयातक है।
- द्विपक्षीय संबंधों पर नया बल भारत के भू-राजनीतिक संबंधों को विकसित करने में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में "वैश्विक दक्षिण" की आवाज के रूप में और एक उभरती आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने का महत्वपूर्ण प्रयास है।
- लेकिन स्मार्ट कृषि से लेकर बुनियादी ढांचे तक सभी क्षेत्रों में उपस्थिति के साथ, मिस्र में चीन का सबसे अधिक आर्थिक प्रभाव पड़ा है।
भारत-मिस्र रणनीतिक साझेदारी चार स्तंभों पर बनाई गयी--
- राजनीतिक और रक्षा सहयोग;
- आर्थिक जुड़ाव;
- शैक्षणिक और वैज्ञानिक आदान-प्रदान;
- सांस्कृतिक और लोगों का लोगों से संपर्क।
- भारत के लिए, स्वेज नहर, जो खाड़ी देशों और उत्तरी अफ्रीका तक फैली हुई है, इस क्षेत्र के लिए एक तैयार व्यापार प्रवेश द्वार प्रदान करती है। मिस्र, स्वेज नहर आर्थिक क्षेत्र में भारतीय औद्योगिक निवेश का सक्रिय रूप से प्रचार कर रहा है।
- भारतीय पक्ष भी अपने आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए रक्षा व्यापार को आगे बढ़ाने की उम्मीद कर रहा है, तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट में मिस्र की रुचि कथित तौर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के दौरे पर व्यक्त की गई थी।
मैतेई समुदाय
चर्चा में क्यों ?
- राज्य की घाटी में रहने वाले मैतेई लोगों के लिए ST दर्जे की मांग पर मणिपुर उच्च न्यायालय के एक आदेश के अनुसार 2013 से समुदाय द्वारा प्रस्तुत कई अनुरोधों के बावजूद सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
- इसी कारण पहाड़ी जिलों में आदिवासी समूहों द्वारा विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, जो जातीय हिंसा के एक चक्र का कारण बना और इसने राज्य को गहरे संकट में डाल दिया है।
- मणिपुर के प्रमुख एवं अधिकांश वैष्णव मैतेई समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग इनर लाइन परमिट (ILP) की मांग के साथ-साथ चली है, जो राज्य में बाहरी लोगों के प्रवेश को प्रतिबंधित करती है और जिसे पहली बार 1980 में संसद में रखा गया था।
पहली मांग, 2012
- मणिपुर की अनुसूचित जनजाति मांग समिति (STDCM) की स्थापना नवंबर, 2012 में की गई थी।
- मैतेई जनजाति संघ (MTU) , जिसका गठन 2022 में किया गया था, के द्वारा 2023 में उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गयी। जिसके तहत ST दर्जे की मांग का ज्ञापन राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को सौंपा जा चुका है ।
- इनमें से पहला ज्ञापन STDCM द्वारा नवंबर, 2012 में मणिपुर के तत्कालीन राज्यपाल गुरबचन सिंह जगत को सौंपा गया था। इसमें तर्क दिया गया कि 1949 में मणिपुर साम्राज्य और भारत संघ के बीच विलय समझौते से पूर्व, अंग्रेजों द्वारा मैतेई को "जनजातियों के बीच जनजाति" के रूप में नामित किया गया था।
केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया
- जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अनुसार, 2013 में मणिपुर सरकार को पत्र लिख नवीनतम सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण डेटा और समुदाय पर एक नृवंशविज्ञान रिपोर्ट के साथ, ST सूची में मैतेई समुदाय को शामिल करने पर एक विशिष्ट सिफारिश का अनुरोध किया गया।
- इम्फाल में किसी भी सरकार द्वारा न तो ये दस्तावेज़ और न ही मैतेई समुदाय को ST सूची में शामिल करने का कोई अनुरोध प्रस्तुत किया गया है।
'पहचान, कोटा नहीं'
- 1951 में मैतेई समुदाय की जनसंख्या 59% थी, जो 2011 में घटकर 44% हो गई।
- मैतेई समुदाय के कुछ वर्ग ऐसे हैं जिन्हें SC का दर्जा प्राप्त है, वहीं मैतेई को भी OBC का दर्जा दिया गया।
- मैतेई समुदाय का मणिपुर की केवल 8% भूमि पर कब्जा है। बाहर से कोई भी यहाँ आ सकता है, जमीन खरीद सकता है और निवास कर सकता है।
- दूसरी ओर, जनजातीय समूहों का तर्क है कि वे अब मणिपुर की आबादी का 40% हिस्सा हैं और विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व कम है।
पुरानी 'परमिट' प्रणाली
- 1881 में मणिपुर की पहली जनगणना में कुल जनसंख्या 2,21,070 बताई गई जिनमें 1,17,108 मैतेई, पहाड़ी जनजातियों के 85,288 व्यक्ति, 105 विदेशी और मुस्लिम, तथा 18,569 मायांग है।
- 1901 में, मणिपुर साम्राज्य ने "विदेशियों" (जिसमें अन्य भारतीयों को भी शामिल माना जाता था) और गैर-मणिपुरियों के प्रवेश को नियंत्रित करने के लिए "परमिट" या "पासपोर्ट" प्रणाली तैयार की। इस समय मणिपुर की जनसंख्या 2,84,465 (1901 की जनगणना) थी।